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Hindi poem : काफिर यार

कव्वाली होगायी किसी औरकी
मैं अपने साथ ये एक खयाल ले बैठा हूं
कानोमे घुले अमरीत फिरसे
कोई सुरोंसे ये रंग हटा दे|1|

मैं चाटता था उंगलीसे खीर
उसे शिरखुरमा केहने की जिद कर बैठा है कोई
ये कंकर चुभता बडा है
कोई जुबान का सुवाद लौटा दे|2|

तेरी कुरतेसे चूरया करते थे सिक्के
ये अमिरी बचपनकी हुआ करता थी “यासिन”
जेबे गिनके मिलने लगे है सिने ईदपर
कॊई ऊन सिने मे फिर दिल धडका दे|3|

तेरे आंगनमें भरती मेहफिल
मेरी कविता,तेरे शेरों की वॊ सिलसिले
अब मोदी-ओवेसी बकने लगे है हम
कोई अंखोसे ये किल निकाल दे|4|

मुझे केहने लगे है काफिर आजकल
ऊनही मुस्लीमो मे जान अटकी पडी है कहीं
सख्ती से नमाजी बन बैठा वहा
कोई उसमेसे मेरा यार लौटादे |5|

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